Indian Institute of Vegetable Research (IIVR), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अधीन एक प्रमुख अनुसंधान संस्थान है। जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव गंभीर रूप से सामने आने लगे हैं।
इस वर्ष डेढ़ महीने से भी अधिक समय तक पूरा उत्तर भारत 46-47 डिग्री सेल्सियस तापमान पर झुलसता रहा। भीषण गर्मी की बढ़ती समय अवधि के कारण अब सब्जी और अन्य फसलों पर भी खतरा मंडरा रहा है। क्योंकि जिस तापमान पर सब्जियों की पैदावार होती है, तापमान उससे लगातार ऊपर बना हुआ है।
ऐसे में भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान वाराणसी (IIVR) के विज्ञानी पौष्टिकता बढ़ाने के साथ-साथ जलवायु के अनुकूल सब्जियों की किस्मों को विकसित करने पर तेजी से काम कर रहे हैं। संस्थान के विज्ञानियों को अधिक तापमान में भी पैदा होने वाली गोभी, टमाटर, मूली की संकर प्रजातियों को विकसित करने में सफलता भी मिल चुकी है।
आमतौर पर सर्दियों की सब्जियां मानी जाने वाली गोभी, टमाटर, मूली अब 34 डिग्री से लेकर 43 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में भी पैदा की जा सकेंगी।
Indian Institute of Vegetable Research (IIVR) | भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान
![Indian Institute of Vegetable Research- 2024 Indian-Institute-of-Vegetable-Research](https://prashashakdristi.in/wp-content/uploads/2024/07/Indian-Institute-of-Vegetable-Research.jpg)
भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (IIVR) सब्जी फसलों पर वैज्ञानिक अनुसंधान और नवाचारों के लिए समर्पित है। यह संस्थान वाराणसी, उत्तर प्रदेश में स्थित है और इसे सब्जी उत्पादन में वृद्धि, किसानों की आय बढ़ाने और देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया है।
संस्थान का उद्देश्य
भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान वाराणसी (Indian Institute of Vegetable Research) का मुख्य उद्देश्य सब्जी फसलों की उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार करना है। इसके साथ ही, यह संस्थान निम्नलिखित उद्देश्यों को भी पूरा करने के लिए कार्यरत है:
नई और उच्च उत्पादकता वाली किस्मों का विकास
संस्थान विभिन्न सब्जियों की नई और उन्नत किस्मों का विकास करता है, जो विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में उच्च उत्पादकता देने वाली होती हैं।
फसल प्रबंधन और संरक्षण
सब्जियों की बेहतर उपज के लिए प्रभावी फसल प्रबंधन और संरक्षण तकनीकों का विकास और प्रसार।
किसान प्रशिक्षण और शिक्षा
किसानों को नवीनतम तकनीकों और कृषि विज्ञान में प्रशिक्षित करना ताकि वे अधिकतम उत्पादन और लाभ कमा सकें।
पोषण और खाद्य सुरक्षा
पोषण और खाद्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उच्च पोषक तत्वों वाली सब्जियों का उत्पादन।
अनुसंधान और विकास
IIVR में सब्जियों के विभिन्न पहलुओं पर गहन अनुसंधान किया जाता है। यह संस्थान निम्नलिखित क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास के लिए प्रसिद्ध है:
किस्म सुधार
संस्थान में सब्जी फसलों की उन्नत और रोग प्रतिरोधी किस्मों का विकास किया जाता है। टमाटर, बैंगन, मिर्च, प्याज, लहसुन, और शिमला मिर्च जैसी प्रमुख सब्जियों की उच्च उत्पादकता वाली किस्में विकसित की गई हैं, जो भारतीय कृषि के लिए महत्वपूर्ण साबित हुई हैं।
जैविक कृषि
IIVR जैविक कृषि के क्षेत्र में भी अनुसंधान कर रहा है। जैविक खाद, कीटनाशकों और रोग नियंत्रण विधियों के विकास के माध्यम से किसानों को सुरक्षित और पर्यावरणीय अनुकूल तकनीकों का प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
पोस्ट-हार्वेस्ट तकनीक
सब्जियों की ताजगी और पोषण बनाए रखने के लिए पोस्ट-हार्वेस्ट तकनीकों का विकास भी IIVR का एक प्रमुख क्षेत्र है। इस संस्थान ने विभिन्न सब्जियों के लिए उपयुक्त भंडारण और प्रसंस्करण तकनीकों का विकास किया है, जिससे फसल के बाद होने वाले नुकसान को कम किया जा सके।
प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और विस्तार
भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान वाराणसी प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और विस्तार के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करता है। इन कार्यक्रमों में किसानों को नवीनतम अनुसंधान परिणामों और तकनीकों के बारे में जानकारी दी जाती है। संस्थान द्वारा आयोजित किसान मेलों, कार्यशालाओं और प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेकर किसान अपने ज्ञान और कौशल को उन्नत कर सकते हैं।
सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
IIVR के अनुसंधान और विकास कार्यों का सामाजिक और आर्थिक प्रभाव व्यापक है। इस संस्थान द्वारा विकसित तकनीकों और किस्मों ने किसानों की आय में वृद्धि की है और ग्रामीण समुदायों में जीवन स्तर में सुधार किया है। साथ ही, देश की खाद्य सुरक्षा को भी मजबूत बनाया है।
भविष्य की योजनाएं
भविष्य में, IIVR का लक्ष्य है कि वह नवीनतम वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग करके सब्जी उत्पादन को और अधिक बढ़ावा दे। इसके लिए, संस्थान नई और उन्नत किस्मों के विकास, जैविक कृषि के प्रसार, और किसानों को नवीनतम तकनीकों से अवगत कराने के लिए निरंतर प्रयासरत रहेगा।
नवीनतम शोध
टमाटर की किस्मे
IIVR के संस्थान में टमाटर की दो संकर प्रजातियां ‘काशी अद्भुत‘ और ‘काशी तपस‘ विकसित की गई हैं, जिनकी पैदावार 34 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में भी अच्छी मिलेगी। ‘काशी तपस’ को उप्र में व्यावसायिक खेती के लिए हरी झंडी भी मिल गई है। इसके साथ ही काशी अद्भुत की सिफारिश की गई है। इसकी रोपाई फरवरी के पहले सप्ताह में की जाती है और तोड़ाई जून के तीसरे सप्ताह तक जारी रहती है। अंतिम तोड़ाई तक इसके फलों का आकार (45-60 ग्राम) और फलों का रंग (लाल) स्थिर रहता है।
मूली की किस्मे
‘काशी ऋतुराज‘ मूली 38 से 43 डिग्री तक का ताप सह सकती है। अभी बाजार में जो मूली की प्रजाति है उसमें दाग बहुत है, लेकिन ‘काशी ऋतुराज’ बेहतर साबित होगी। विभिन्न ऋतुओं में इसकी उच्च विपणन योग्य उपज क्षमता 35-70 टन/हेक्टेयर तक है।
ऐसे ही अधिक एंटी आक्सीडेंट की मात्रा वाली लाल मूली भी विकसित की गई है। इसमें मौजूद एंटी आक्सीडेंट से डायबिटीज, हाइपरटेंशन व कैसर की तीव्रता में भी कमी आएगी।
यानी टमाटर और मूली की इस प्रजाति की पैदावार सर्दियों के साथ गर्मी के मौसम में की जा सकेगी।
साग की किस्मे
60 डिग्री में भी पैदा होगा ‘काशी मनु साग / कलमी साग (करमुआ) ‘काशी मनु’ को तो 60 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सहने के लिए तैयार किया जा रहा है। केंद्रीय प्रजावि विमोचन समिति की ओर से इस साग का नाम काशी मनु तय किया गया। IIVR के के अनुसार जलवायु परिवर्तन के दौर में “कलमी साग” काफी कारगर सिद्ध होगा। इसे सूखा और अत्यधिक बारिश दोनों ही परिस्थितियों भी उगाया जा सकता. है। लागत न के बराबर और मुनाफा इतना की किसानों की आय दोगुनी करने में कलमी साग की खेती काफी प्रभावी सिद्ध होगी। इसका प्रयोग पोषण एवं औषधीय गुणों के लिए प्राचीन काल से होता आया है।
पालक की किस्मे
संस्थान में पालक की भी एक ऐसी किस्म ‘काशी बारामासी‘ विकसित की गई है, जिसकी जब चाहे बोआई कर सकते हैं। इसकी खास बात यह है कि बोने के मात्र 25-30 दिन बाद ही कटाई कर खाया जा सकता है। इसमें भी 40-45 डिग्री सेल्सियस तापमान सहने की शक्ति है।
28 राज्यों में गोभी, टमाटर, मूली व साग की नई किस्म का सफल परीक्षण किया जा चुका है और कुछ स्थानों पर तो पैदावार भी शुरू हो गई है।
भिंडी
![Indian Institute of Vegetable Research- 2024 kashi-lalima](https://prashashakdristi.in/wp-content/uploads/2024/07/लाल-भिंडी-1024x1024.webp)
भिंडी हो गई लाल। IIVR संस्थान में लाल भिंडी की किस्म तैयार की गई है।
गाजर की किस्मे
इसके अलावा ‘काशी कृष्णा’ काला गाजर की किस्म भी विकसित की गई है। इसमें 36 गुना तक एंटी आक्सीडेंट हैं।
![Indian Institute of Vegetable Research- 2024 kashi-krishna-with-leaf](https://prashashakdristi.in/wp-content/uploads/2024/07/Kashi-Krishna.webp)
ऐसे ही अधिक एंटी आक्सीडेंट की मात्रा वाली लाल मूली भी विकसित की गई है। इसमें मौजूद एंटी आक्सीडेंट से डायबिटीज, हाइपरटेंशन व कैसर की तीव्रता में भी कमी आएगी।
सेम
भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान वाराणसी (IIVR) मे विकसित पंखिया सेम की खासियत यह है कि इसके फूल, फल, पत्ते, तने और जड़ सभी को फायदे के लिए खाने में उपयोग किया जा सकता है।
SR | सब्जी | किस्म |
1 | टमाटर | काशी अद्भुत , काशी तपस |
2 | मूली | काशी ऋतुराज, काशी लोहित (लाल मूली ) |
3 | साग | काशी मनु साग / कलमी साग (करमुआ) |
4 | पालक | काशी बारामासी |
5 | गाजर | काशी कृष्णा (काला गाजर ) |
6 | सेम | पंखिया सेम |
7 | भिंडी | काशी लालिमा (लाल भिंडी )(Chlorophyl + Anthocyanin) |
निष्कर्ष
भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (IIVR) भारतीय कृषि का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। इसके अनुसंधान और विकास कार्यों ने सब्जी उत्पादन में नई क्रांति लाई है और किसानों को आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस संस्थान के प्रयासों से न केवल भारतीय कृषि का भविष्य सुरक्षित है, बल्कि खाद्य सुरक्षा और पोषण भी सुनिश्चित हुआ है। IIVR का योगदान भारतीय कृषि में अतुलनीय है और आने वाले वर्षों में भी यह संस्थान अपने अनुसंधान और नवाचारों से भारतीय कृषि को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में सक्षम होगा।
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Que. भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान कहां स्थित है ?
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Ans. वाराणसी